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भ्रष्टाचार लोकतंत्र का लोकमंत्र

बात पते की....
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सरकार किसे डराना चाहती है? कालेधन के अपराधियों की जाँच में सरकार ने इतनी सक्रियता दिखाई होती तो बात समझ में आती पर सरकार समझती है कि मीडिया वाले मूर्ख हैं उनको जैसे उल्लू बनायेगें वे बन जाते हैं सो रोजना उसे पंतजली और उनके सहयोगियों की पोल खोलते रहेगें तो ये मूर्ख लोग उसी में उलझ कर रह जायेगें। देश की जनता बाबा रामदेव व उनकी संपति का लेख-जोखा सरकार से नहीं मांग रही है सरकार उन बेइमानों की जाँच करें जिसके लिए उच्चतम न्यायालय गला फाड़-फाड़कर चिल्ला रही है और जिनकी वकालत सरकार कर रही है देश की जनता यह जानना चाहती है कि सरकार उनपर क्या कार्रवाई करने जा रही है।

जब हम देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर अपनी पैनी नजर डालतें हैं तो हम पाते है कि वर्तमान सरकार पूरी तरह से भ्रष्टाचारियों के गिरफ्त में कैद हो चुकी है तो दूसरी तरफ विपक्ष भी पूरी तरह से पाक–साफ नहीं इसके अन्दर भी बड़ी–बड़ी दाढ़ी–मूंछ वाले पांव फैलाये बैठें हैं। आंचलिक व क्षेत्रीय दलों के अन्दर भी राष्ट्र के संचालन की कोई इच्छा शक्ति दूर–दूर तक दिखाई नहीं देती सभी अपने–अपने राजनैतिक हितों और सत्ता सुख–स्वाद लेने में लगी है। कुल मिला–जुला कर हम पातें हैं कि भ्रष्टाचार लोकतंत्र का लोकमंत्र बन चुका है। इनको बदले तो लायें किसको? यह एक आम प्रश्न हमारे जेहन में कोंध रहा है। रावन ने रामदूत हनुमान की पूँछ में आग लगा दी परिणाम क्या हुआ सोने की लंका पलकों में ही धू–धूकर धधकने लगी। बाबा रामदेव के जाँच प्रकरण से ऐसा प्रतित होता है कि देश में अब कालेधन की बात करने व भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों की खैर नहीं। सरकार की ताकत मानानीय उच्च न्यायलय के लाख फटकार के बावजूद कालेधन के अपराधियों को बचाने का प्रयास करती रही। खुद की जाँच एजेन्सियों को देश के लूटे धन को देश में लाने के लिए तो नहीं लगा पाई हाँ! बाबा रामदेव व उनके सहयागी श्री बालकृष्ण की डिग्रीयों और उनकी जन्म प्रमाणिकता जाँच करने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी। सरकार किसे डराना चाहती है? कालेधन के अपराधियों की जाँच में सरकार ने इतनी सक्रियता दिखाई होती तो बात समझ में आती पर सरकार समझती है कि मीडिया वाले मूर्ख हैं उनको जैसे उल्लू बनायेगें वे बन जाते हैं सो रोजना उसे पंतजली और उनके सहयोगियों की पोल खोलते रहेगें तो ये मूर्ख लोग उसी में उलझ कर रह जायेगें। देश की जनता बाबा रामदेव व उनकी संपति का लेख–जोखा सरकार से नहीं मांग रही है सरकार उन बेइमानों की जाँच करें जिसके लिए उच्चतम न्यायालय गला फाड़–फाड़कर चिल्ला रही है और जिनकी वकालत सरकार कर रही है देश की जनता यह जानना चाहती है कि सरकार उनपर क्या कार्रवाई करने जा रही है। बाबा रामदेव की जाँच कर सरकार बेईमानों की वकालत करती दिखाई दे रही है। सरकारी ताकतों का प्रयोग करना है तो सरकार देश में बस गये बंग्लादेशियों के हजारों जाली पासपोर्ट की भी जाँच करें जो देश में घुसपैठ कर न सिर्फ देश की अर्थ व्यवस्था को भारी क्षति पंहुचा रहें हैं। देश की सुरक्षा को भी खतरा बना हुआ है। बाबा रामदेव व पंतजलि को नुकसान पंहुचाकर सरकार परोक्ष रूप से उन विदेशी ताकतों का मनोबल मजबूत करने में लगी है जो नहीं चाहती कि भारतीय उद्योग व भी खासकर भारतीय दवा उद्योग उनका मुकाबला करे। सरकार की इस प्रकार की बदले से परिपूर्ण कार्रवाई को हम किसी भी रूप में सही नहीं ठहरा सकते। भले ही बालकृष्ण की सारी डिग्रीयों जाली हों वह हमारे देश के नागरिकों की भलाई में संलग्न है न कि आंतकवादी कार्य में संलिप्त है। इस तरह की कार्रवाई की हम खुले शब्दों में निन्दा करते हैं। सरकार आंतकवादियों के लिए इतनी सक्रियता दिखती तो हमें थोड़ा संतोष होता परन्तु सरकार की मंशा न तो आंताकवदियों को सजा दिलाने की है न ही कालेधन के मामाले में सरकार पाक–साफ नजर आती है।

 

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