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बात पते कीः गठबंधन धर्म?

बात पते की....
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भ्रष्टाचार को भेंट चढ़ी यूपीए-2 भी तब चर्चा में आयी जब गठबंधन धर्म को लेकर संसद में प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह का जो बयान आया। संसद के भीतर उन्होंने यह बात स्वीकार की, और भ्रष्टाचार के लिये सीधे तौर पर गठबंधन धर्म को जिम्मेदार ठहरा दिया। प्रधानमंत्रीजी का यह बयान ना सिर्फ गठबंधन धर्म पर प्रश्नचिन्ह लगाता है देश को सजग भी करता है।

पिछले कुछ चुनावों से गठबंधन की राजनीति शुरू हुई। इससे पहले चुनाव के पश्चात सांसदों-विधायकों को तोड़ने-जोड़ने की राजनीति की जाती थी। जब दल-बदलू नेताओं ने राजनैतिक दलों के हितों पर प्रहार किया तो इन लोकतंत्री दलों ने सोचा कि इस खरीद-बिक्री को रोका जाए। इस व्यवस्था को रोकने के लिये 1985 में संविधान में 52वां संशोधन कर ‘‘एंटी डिफेक्सन कानून’’ को पास कर दल-बदलू व्यवस्था को कुछ हद तक विराम लगाने का प्रयास किया गया।

एंटी डिफेक्सन कानून से सत्ता की राजनीति करने वाले बड़े राजनैतिक दलों को तो दल-बदलु नेताओं से राहत मिल गई परन्तु उनकी पार्टी को सत्ता में बहुमत मिले इसके लिये चुनाव के पहले और उपरान्त प्रयास चलता रहा। वहीं छोटे राजनैतिक दलों के भीतर टूट का खतरा आज भी बना रहता है। इनके खरीद-फरोक्त से इंकार नहीं किया जा सकता। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यूपीए-एक को बचाने के लिये (कैश फार वोट) की घटना इतिहास में दर्ज है।

भ्रष्टाचार को भेंट चढ़ी यूपीए-2 भी तब चर्चा में आयी जब गठबंधन धर्म को लेकर संसद में प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह का जो बयान आया। संसद के भीतर उन्होंने यह बात स्वीकार की, और भ्रष्टाचार के लिये सीधे तौर पर गठबंधन धर्म को जिम्मेदार ठहरा दिया। प्रधानमंत्रीजी का यह बयान ना सिर्फ गठबंधन धर्म पर प्रश्नचिन्ह लगाता है देश को सजग भी करता है।  सवाल उठता है कि गठबंधन सिर्फ इसलिए किया जाता है, ताकी देश को लूटा जा सके?

इन सब प्रश्नों पर हमें गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। गठबंधन की राजनीति को हमें किस रूप में देखना चाहिये? सच तो यह है कि गठबंधन मतदाताओं के वोट बैंक को एकत्रित करने का एक हथकंडा बनकर रह गया है। इस हथकंडे का उदेश्य देश की सेवा कदापी नहीं यह प्रयोग एक प्रकार से जनता को धोखा देने और मिल बांटकर देश को लूटने का राजनीति प्रयास मात्र है। – शम्भु चौधरी 29.01.2014

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