आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर कड़ाके की ठंड के बीच अचानक से गर्मी पैदा हो गई। भाजपा के जो रणनीतिकार लोकसभा चुनाव को कलतक एक तरफा गेम मान रहे थे। वे खुद अब असमंजस्य में पड़ गये कि इस केजरीवाल का क्या करें? कालीटोपी वाले खुद को राजनीति से दूर मानती थे वे भी राजनीति के मैदान में चक्कर लगने लगे।
इस बीच देश के इतिहास में केजरीवाल ने एक नया अध्याय जोड़ दिया। अब तक राजनैतिक दल अपने उम्मिदवारों की सूची जारी करते थे। आम आदमी पार्टी ने एक ऐसी सूची जारी कर दी जिसकी किसी ने कभी कल्पना तक नहीं की थी। देश को लूटने वाले भ्रष्ट नेताओं की पहली सूची जिसमें मोदी-राहुल सहित वे तमाम चुने हुए नेताओं के नाम है जिनके नामों से देश का समाचार रोजाना सुर्खियों में बना रहता था।
इस सूची के जारी करते ही देश की राजनीति के जाने-माने विद्वानों के बीच इस बात की बहस छिड़ गई कि केजरीवाल को यह अधिकार किसने दिया? कि वे इन नामों को भ्रष्ट नेताओं (बेईमानों) की सूची में डाल दें। जब विश्व में बड़े-बड़े घरानों की सूची बन सकती है, नामी-गरामी नेताओं की सूची बन सकती है। तो देश को गुमराह करने वाले, देश को लूटने वाले और देश में राजनैतिक अराजकता का संचार करने वाले बेईमान/भ्रष्ट नेताओं की सूची क्यों नहीं बन सकती?
रोटी के टूकरों पर पलने वाले देश के चंद विद्वान इस सूची को नकारने में लगे हैं। इनका तर्क-कुतर्क जो भी कह लें कि इन नेताओं को किसी अदालत ने अभी तक दोषी करार नहीं दिया है। फिर ये लोग भ्रष्ट कैसे हो सकते हैं? वहीं भाजपा मोदी के नाम को लेकर और कांगेस राहूल को लेकर केजरीवाल को घेरने में लगी है। केजरीवाल तो यही चाहतें हैं कि देश में बहस तो शुरू हो कि देश को भ्रष्ट/बेईमान और दागी नेताओं से कैसे बचाया जा सके। अकेले केजरीवाल की क्या औकात कि वह इनको पराजित कर सके, हाँ! जिसप्रकार देश में प्रतिक्रिया होनी शुरू हुई है इससे लग रहा कि देश में अभी भी अच्छे और ईमानदार लोगों का बहुमत है जो यह मानते है कि देश की पवित्र संसद में बेईमानों के बढ़ते प्रभाव को रोका जाना चाहिये।
यह एक बहस का विषय है। हाँ! केजरीवाल ने यह तो बता दिया कि देश में राजनीति सिर्फ ऊपर से ही नहीं, नीचे से भी शुरू की जा सकती है। देश के राजनीति दल संभवतः केजरीवाल से कुछ सबक लें और देश लूटने की गठबंधन राजनीति को बंद कर स्वच्छ और साफ-सुथरी राजनीति की एक नई पहल शुरू करेगें।
– शम्भु चौधरी 01.02.2014
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आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर कड़ाके की ठंड के बीच अचानक से गर्मी पैदा हो गई। भाजपा के जो रणनीतिकार लोकसभा चुनाव को कलतक एक तरफा गेम मान रहे थे। वे खुद अब असमंजस्य में पड़ गये कि इस केजरीवाल का क्या करें? कालीटोपी वाले खुद को राजनीति से दूर मानती थे वे भी राजनीति के मैदान में चक्कर लगने लगे।
इस बीच देश के इतिहास में केजरीवाल ने एक नया अध्याय जोड़ दिया। अब तक राजनैतिक दल अपने उम्मिदवारों की सूची जारी करते थे। आम आदमी पार्टी ने एक ऐसी सूची जारी कर दी जिसकी किसी ने कभी कल्पना तक नहीं की थी। देश को लूटने वाले भ्रष्ट नेताओं की पहली सूची जिसमें मोदी-राहुल सहित वे तमाम चुने हुए नेताओं के नाम है जिनके नामों से देश का समाचार रोजाना सुर्खियों में बना रहता था।
इस सूची के जारी करते ही देश की राजनीति के जाने-माने विद्वानों के बीच इस बात की बहस छिड़ गई कि केजरीवाल को यह अधिकार किसने दिया? कि वे इन नामों को भ्रष्ट नेताओं (बेईमानों) की सूची में डाल दें। जब विश्व में बड़े-बड़े घरानों की सूची बन सकती है, नामी-गरामी नेताओं की सूची बन सकती है। तो देश को गुमराह करने वाले, देश को लूटने वाले और देश में राजनैतिक अराजकता का संचार करने वाले बेईमान/भ्रष्ट नेताओं की सूची क्यों नहीं बन सकती?
रोटी के टूकरों पर पलने वाले देश के चंद विद्वान इस सूची को नकारने में लगे हैं। इनका तर्क-कुतर्क जो भी कह लें कि इन नेताओं को किसी अदालत ने अभी तक दोषी करार नहीं दिया है। फिर ये लोग भ्रष्ट कैसे हो सकते हैं? वहीं भाजपा मोदी के नाम को लेकर और कांगेस राहूल को लेकर केजरीवाल को घेरने में लगी है। केजरीवाल तो यही चाहतें हैं कि देश में बहस तो शुरू हो कि देश को भ्रष्ट/बेईमान और दागी नेताओं से कैसे बचाया जा सके। अकेले केजरीवाल की क्या औकात कि वह इनको पराजित कर सके, हाँ! जिसप्रकार देश में प्रतिक्रिया होनी शुरू हुई है इससे लग रहा कि देश में अभी भी अच्छे और ईमानदार लोगों का बहुमत है जो यह मानते है कि देश की पवित्र संसद में बेईमानों के बढ़ते प्रभाव को रोका जाना चाहिये।
यह एक बहस का विषय है। हाँ! केजरीवाल ने यह तो बता दिया कि देश में राजनीति सिर्फ ऊपर से ही नहीं, नीचे से भी शुरू की जा सकती है। देश के राजनीति दल संभवतः केजरीवाल से कुछ सबक लें और देश लूटने की गठबंधन राजनीति को बंद कर स्वच्छ और साफ-सुथरी राजनीति की एक नई पहल शुरू करेगें।
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