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भाजपाः 56 इंच का सीना?

बात पते की....
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भाजपाः 56 इंच का सीना?
आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी जूटे भाजपा के एकलौते नेता की बैचेनी साफ झलकने लगी है। वे अब जहाँ भी जातें हैं कुछ ना कुछ ऐसा बोल जातें हैं, जिसको लेकर उनकी खुद की ही मुश्किलें बढ़ जाती है। बिहार गये तो तक्षशीला को लेकर विवाद में उलक्ष गये तो कभी खुद के ही नेता स्व. श्यामाप्रसाद मुखर्जी का नाम ही भूल गये। कुछ से कुछ बोल जातें हैं मोदी। कब क्या कहतें हैं इनको खुद ही होश ही नहीं।
अब कल की बात लें मोदी जी कोलकाता आये और लम्बा-चैड़ा भाषण बल्कि यूँ कहा जाए मोदी ज्ञान बंगाल की जनता में बांट गये। इनके इस ज्ञान से एक बात तो साफ हो गई कि मोदीजी लहर जैसी कोई बात जैसा कि भाजपा और संध के नेता सोचतें हैं वह तो नहीं हैं।  हाँ! संघ प्रायोजित अफवाह जरूर हवा में फैली हुई हैं। बंगाल की आबो हवा को बदलने के लिये मोदी को 56 इंच को चौड़ा सीना चाहिये। जो बंगाल की जनता को यह बताने आये थे कि कांग्रेस ने प्रणव मुखर्जी को प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया, वह यह क्यों भूल जातें हैं कि वे खुद भी तो वही कर रहें हैं जो कांग्रेस ने प्रणवदा के साथ किया गया था। अब कोलकाता से दिया गया उनका यह संदेश उनके ही जी का जंजाल बन गया। कल रात होते-होते फेसबुक पर लाखों लोग इस बात का जिक्र कर रहे थे कि मोदीजी आप क्या कर रहें हैं?
मोदी जी यह बात ना भूलें कि उनको लोग विकल्प के रूप में जरूर देख रहें हैं पर वे सर्वमान्य नेता नहीं हैं जैसा कि अटलजी को लेकर देश में महौल था।  आज भी सत्ता पक्ष हो या विपक्ष उनकी इज्जत उनके सम्मान के सामने नतमस्तक है। जबकि मोदीजी उनके चरणों की धूल के बराबर भी नहीं हैं। यही बात अडवाणी जी को लेकर कही जा सकती है। भले ही उनके कुछ कदम भावानात्मक दृष्टि से विवादित रहें हैं भले ही संघ उनके जिन्ना के बयान से खफा रहा हो, परन्तु उनके नाम को लेकर देश में कहीं कोई विवाद देश में नहीं दिखता।
धर्म की राजनीति करने वाली भाजपा दूसरी राजनीति पार्टियों पर यह अरोप लगाती है कि वे लोग समाज  को जाति के आधार पर बांटने का काम करतें हैं। अल्पसंख्यक वोट की राजनीति करतें हैं। जब मोदी जी अपने भाषणों में यह कहते हैं कि वे छोटी जाति से हैं वे एक चाय बेचने वाले हैं इससे सबको जलन हो रही है। यह जाति की राजनीति नहीं तो और इसे क्या कहा जाए?
आज अडवाणी जी भाजपा के ही नहीं एनडीए के निर्विवाद नेता हैं। जबकि मोदी को लेकर बंगाल और बिहार की दो शक्तिशाली दल भाजपा से अलग है। एनडीए से जदयू ने जहाँ मोदी के चलते ही अपने 20 साल पुराने संबंध को तौड़ दिया तो वहीं तृणमूल पार्टी नेत्री ममता बनर्जी ने कई बार मोदी के नाम को लेकर कड़ी टिप्पणी कर चुकी है।
भले ही अडवाणी जी को लेकर भाजपा के नेता या सोचतें हैं कि अब उनमें संगठन को जोड़ने और जनसभाओं में भीड़ लाने की क्षमता नहीं रही। परन्तु भाजपा ने जिस रास्ते से सत्ता के पास जाने का रास्ता चुना है वह संगठन को तार-तार कर देगा। लगातार 10 साल से विपक्ष को नेतृत्व प्रदान करने की क्षमता रखने वाले भाजपा के शीर्ष नेताओं को दरकिनार कर राजनाथजी संघ की विचारधारा को समाप्त करने पर आमदा हैं।
खुद के पापों से मरी हुई कांग्रेस के खिलाफ बड़ी आसानी से लड़ा जा सकता था। परन्तु आज भाजपा में मोदी के अलावा कोई नेता दिखाई नहीं देता। यह इस बात की तरफ इशारा है कि भाजपा अब व्यक्ति पूजा की तरफ कदम रख चुकी है।
भाजपा में जिसप्रकार प्रायः सभी कद्दवार नेताओं को क्रमवद्ध तरीके से किनारे किया है वह भाजपा के सेहत के लिये चिंताजनक स्थिति को बयान करती है। कहीं राजनाथ सिंह जी, मोदी के पीछे भागते-भागते भीड़ में ना खो जाये? जयहिन्द!
– शम्भु चौधरी 07.02.2014
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आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी जूटे भाजपा के एकलौते नेता की बैचेनी साफ झलकने लगी है। वे अब जहाँ भी जातें हैं कुछ ना कुछ ऐसा बोल जातें हैं, जिसको लेकर उनकी खुद की ही मुश्किलें बढ़ जाती है। बिहार गये तो तक्षशीला को लेकर विवाद में उलक्ष गये तो कभी खुद के ही नेता स्व. श्यामाप्रसाद मुखर्जी का नाम ही भूल गये। कुछ से कुछ बोल जातें हैं मोदी। कब क्या कहतें हैं इनको खुद ही होश ही नहीं।

अब कल की बात लें मोदी जी कोलकाता आये और लम्बा-चौड़ा भाषण बल्कि यूँ कहा जाए मोदी ज्ञान बंगाल की जनता में बांट गये। इनके इस ज्ञान से एक बात तो साफ हो गई कि मोदीजी लहर जैसी कोई बात जैसा कि भाजपा और संध के नेता सोचतें हैं वह तो नहीं हैं।  हाँ! संघ प्रायोजित अफवाह जरूर हवा में फैली हुई हैं। बंगाल की आबो हवा को बदलने के लिये मोदी को 56 इंच को चौड़ा सीना चाहिये। जो बंगाल की जनता को यह बताने आये थे कि कांग्रेस ने प्रणव मुखर्जी को प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया, वह यह क्यों भूल जातें हैं कि वे खुद भी तो वही कर रहें हैं जो कांग्रेस ने प्रणवदा के साथ किया गया था। अब कोलकाता से दिया गया उनका यह संदेश उनके ही जी का जंजाल बन गया। कल रात होते-होते फेसबुक पर लाखों लोग इस बात का जिक्र कर रहे थे कि मोदीजी आप क्या कर रहें हैं?

मोदी जी यह बात ना भूलें कि उनको लोग विकल्प के रूप में जरूर देख रहें हैं पर वे सर्वमान्य नेता नहीं हैं जैसा कि अटलजी को लेकर देश में महौल था।  आज भी सत्ता पक्ष हो या विपक्ष उनकी इज्जत उनके सम्मान के सामने नतमस्तक है। जबकि मोदीजी उनके चरणों की धूल के बराबर भी नहीं हैं। यही बात अडवाणी जी को लेकर कही जा सकती है। भले ही उनके कुछ कदम भावानात्मक दृष्टि से विवादित रहें हैं भले ही संघ उनके जिन्ना के बयान से खफा रहा हो, परन्तु उनके नाम को लेकर देश में कहीं कोई विवाद देश में नहीं दिखता।

धर्म की राजनीति करने वाली भाजपा दूसरी राजनीति पार्टियों पर यह अरोप लगाती है कि वे लोग समाज  को जाति के आधार पर बांटने का काम करतें हैं। अल्पसंख्यक वोट की राजनीति करतें हैं। जब मोदी जी अपने भाषणों में यह कहते हैं कि वे छोटी जाति से हैं वे एक चाय बेचने वाले हैं इससे सबको जलन हो रही है। यह जाति की राजनीति नहीं तो और इसे क्या कहा जाए?

आज अडवाणी जी भाजपा के ही नहीं एनडीए के निर्विवाद नेता हैं। जबकि मोदी को लेकर बंगाल और बिहार की दो शक्तिशाली दल भाजपा से अलग है। एनडीए से जदयू ने जहाँ मोदी के चलते ही अपने 20 साल पुराने संबंध को तौड़ दिया तो वहीं तृणमूल पार्टी नेत्री ममता बनर्जी ने कई बार मोदी के नाम को लेकर कड़ी टिप्पणी कर चुकी है।

भले ही अडवाणी जी को लेकर भाजपा के नेता या सोचतें हैं कि अब उनमें संगठन को जोड़ने और जनसभाओं में भीड़ लाने की क्षमता नहीं रही। परन्तु भाजपा ने जिस रास्ते से सत्ता के पास जाने का रास्ता चुना है वह संगठन को तार-तार कर देगा। लगातार 10 साल से विपक्ष को नेतृत्व प्रदान करने की क्षमता रखने वाले भाजपा के शीर्ष नेताओं को दरकिनार कर राजनाथजी संघ की विचारधारा को समाप्त करने पर आमदा हैं।

खुद के पापों से मरी हुई कांग्रेस के खिलाफ बड़ी आसानी से लड़ा जा सकता था। परन्तु आज भाजपा में मोदी के अलावा कोई नेता दिखाई नहीं देता। यह इस बात की तरफ इशारा है कि भाजपा अब व्यक्ति पूजा की तरफ कदम रख चुकी है।

भाजपा में जिसप्रकार प्रायः सभी कद्दवार नेताओं को क्रमवद्ध तरीके से किनारे किया है वह भाजपा के सेहत के लिये चिंताजनक स्थिति को बयान करती है। कहीं राजनाथ सिंह जी, मोदी के पीछे भागते-भागते भीड़ में ना खो जाये? जयहिन्द!

– शम्भु चौधरी 07.02.2014

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