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संविधान के पहरेदार?

बात पते की....
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संविधान के पहरेदार?
‘‘बैईमानों की पूरी व्यवस्था सिस्टम से चलती है।’’
अपने देश का यह दुर्भाग्य रहा है कि संविधान के पहरेदार संविधान की आड़ लेकर देश को लूटने में लगे हैं। मुझे वह दिन याद है जब पिछले दो साल पहले जन लोकपाल बिल को लेकर अण्णाजी का आंदोलन उबाल पर था। उस समय सारे नेताओं की बोलती बंद हो गई थी। अचानक से सभी नियमों को ताक पर रखकर संविधान के ये चैकीदार एक साथ संसद में खड़े होकर देश की जनता को इस बात का आश्वासन दिये थे कि वे जल्द ही एक सशक्त लोकपाल कानून को मूर्तरूप दे देगें। दो साल पश्चात परिणाम हमारे सामने हैं। किस प्रकार इन नेताओं में अब उसके सदस्यों के चयन को लेकर रस्साकशी चल रही है।  दरअसल ये संविधान के रक्षक नहीं भक्षक हैं। जो लोग उच्चतम न्यायालय के निर्णय को बदलने के लिये ‘‘आरटीआई कानून में संशोधन’’ और ‘‘दागी सांसदों व विधायकों को बचाने का बिल’’  रातों रात संसद और राज्यसभा से पारित कर राष्ट्रपति के अनुमोदन हेतु भेज सकतें हैं। मानो इन बैईमानों की सुरक्षा के लिये ही संविधान में तमाम संवैधानिक व्यवस्था बनाई पहले से ही बनाई हुई हो। खुद को कितने सुरक्षित महसुस करते हैं ये बेईमान जब संसद या विधानसभा में चुनकर चले जातें हैं। अंदाजा लगा लिजिये।
वास्तविकता यह है कि पिछले 60-65 सालों में इन राजनैतिक घरानों ने अपनी सुविधानुसार देश के संविधान को गढ़ा और देश को लूटने के नियम बनाते रहे। उद्योगिक घरानों की मिली भगत से देश के खनीज संपदा को लूटने वाले ये संविधान के पहरेदार देश के चंद उद्योगिक घरानों के लाभ के लिये देश की मुद्रा को डालर के अनुपात में कमजोर कर उन्हें लाभ पंहुचाने में कोई कसर बाकी नहीं रखते । भले ही इस मुद्रा विनिमय की कितनी भी कीमत देश की जनता को चुकानी पड़े, इन्हें इस बात की तनिक भी परवाह नहीं।
आज पुनः दिल्ली में इनको संविधान और संवैधानिक व्यवस्था की याद आने लगी।  इनकी संवैधानिक व्यवस्था देश के लूटरों को बचाने के लिये बनी हुई है। किस प्रकार पूरी की पूरी व्यवस्था संविधान की दुहाई देने के लिये एक नजर आती है। मानों बैईमानों को जेल भेजना इनके संविधान में नहीं लिखा है। इनको ईमानदार व्यवस्था लागू करने से कोई दिलचस्पी नहीं। बैईमानों को बचाने वालों को बईमान कहा जाए तो इनके सम्मान को ठेस पंहुचती है।  जबकि देश की पवित्र संसद में बैठकर देश की मर्यादा को तार-तार कर देने में अज्ञैर दरगियों के समर्थन से सरकार चलाने में इनके सम्मान को कोई ठेस नहीं पंहुचती।  इनका खुद का सम्मान देश के सम्मान से कहीं ऊँचा है।  ये अब संविधान के पहरेदार बन चुकें हैं। इनसे ऊपर/ इनके ऊपर अब कोई नहीं। इनकी पूरी व्यवस्था संवैधानिक सिस्टम से चलती है। अब हमें इनके बनाये पूरे सिस्टम को तौड़ना देना होगा। तभी इनको उस जेल भेजा जाना संभव होगा। जयहिन्द!
– शम्भु चौधरी 09.02.2014
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‘‘बैईमानों की पूरी व्यवस्था सिस्टम से चलती है।’’

अपने देश का यह दुर्भाग्य रहा है कि संविधान के पहरेदार संविधान की आड़ लेकर देश को लूटने में लगे हैं। मुझे वह दिन याद है जब पिछले दो साल पहले जन लोकपाल बिल को लेकर अण्णाजी का आंदोलन उबाल पर था। उस समय सारे नेताओं की बोलती बंद हो गई थी। अचानक से सभी नियमों को ताक पर रखकर संविधान के ये चौकीदार एक साथ संसद में खड़े होकर देश की जनता को इस बात का आश्वासन दिये थे कि वे जल्द ही एक सशक्त लोकपाल कानून को मूर्तरूप दे देगें। दो साल पश्चात परिणाम हमारे सामने हैं। किस प्रकार इन नेताओं में अब उसके सदस्यों के चयन को लेकर रस्साकशी चल रही है।  दरअसल ये संविधान के रक्षक नहीं भक्षक हैं। जो लोग उच्चतम न्यायालय के निर्णय को बदलने के लिये ‘‘आरटीआई कानून में संशोधन’’ और ‘‘दागी सांसदों व विधायकों को बचाने का बिल’’  रातों रात संसद और राज्यसभा से पारित कर राष्ट्रपति के अनुमोदन हेतु भेज सकतें हैं। मानो इन बैईमानों की सुरक्षा के लिये ही संविधान में तमाम संवैधानिक व्यवस्था बनाई पहले से ही बनाई हुई हो। खुद को कितने सुरक्षित महसुस करते हैं ये बैईमान जब संसद या विधानसभा में चुनकर चले जातें हैं। अंदाजा लगा लिजिये।

वास्तविकता यह है कि पिछले 60-65 सालों में इन राजनैतिक घरानों ने अपनी सुविधानुसार देश के संविधान को गढ़ा और देश को लूटने के नियम बनाते रहे। उद्योगिक घरानों की मिली भगत से देश के खनीज संपदा को लूटने वाले ये संविधान के पहरेदार देश के चंद उद्योगिक घरानों के लाभ के लिये देश की मुद्रा को डालर के अनुपात में कमजोर कर उन्हें लाभ पंहुचाने में कोई कसर बाकी नहीं रखते । भले ही इस मुद्रा विनिमय की कितनी भी कीमत देश की जनता को चुकानी पड़े, इन्हें इस बात की तनिक भी परवाह नहीं।

आज पुनः दिल्ली में इनको संविधान और संवैधानिक व्यवस्था की याद आने लगी।  इनकी संवैधानिक व्यवस्था देश के लूटरों को बचाने के लिये बनी हुई है। किस प्रकार पूरी की पूरी व्यवस्था संविधान की दुहाई देने के लिये एक नजर आती है। मानो बैईमानों को जेल भेजना इनके संविधान में नहीं लिखा है। इनको ईमानदार व्यवस्था लागू करने में कोई दिलचस्पी नहीं। संसद में बैईमानों को बचाने वालों को बईमान कहा जाए तो इनके सम्मान को ठेस पंहुचती है।  जबकि देश की पवित्र संसद में बैठकर देश की मर्यादा को तार-तार कर देने में और दागियों के समर्थन से सरकार चलाने में इनके सम्मान को कोई ठेस नहीं पंहुचती।  इनका खुद का सम्मान देश के सम्मान से कहीं ऊँचा है।  ये अब संविधान के पहरेदार बन चुकें हैं। इनसे ऊपर/ इनके ऊपर अब कोई नहीं। इनकी पूरी व्यवस्था संवैधानिक सिस्टम से चलती है। अब हमें इनके बनाये पूरे सिस्टम को तौड़ना  होगा। तभी बैईमानों जेल भेजा जाना संभव होगा। जयहिन्द!

– शम्भु चौधरी 09.02.2014

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