दिल्ली विधानसभा के चुनाव में ‘आप’ को सफलता क्या मिली, सत्ता के दलालों ने अपनी नैतिकता को ही ताख पर रख दिया। भाजपा अपनी प्रमुख राजनीति प्रतिद्वन्द्वी कांग्रेस को निशाना लगाने से हटकर पूरे देश में ‘आप’ के खिलाफ जनमत बनाने में लग गई। अचानक से इनके ऊपर ऐसा कौन सा पहाड़ टूट पड़ा कि भाजपा और कांग्रेस दोनों राजनैतिक पार्टियों को ‘आम आदमी’ से खतरा लगने लगा?
इनके समर्थकों की भाषा शर्मनाक तो हो ही चुकी है इन राजनीति दलों के द्वारा संचालित विचारधारा के पोषक लेखकों / समाचार संपादकों की भाषा ने भी अब अपना संयम खो दिया है। अभी तक इनके गले में ‘केजरीवाद’ की बात पच नहीं पा रही। ये मानते हैं कि देश की जनता के विचारों को ये चंद टटू ही चलाते हैं। इनका भ्रम हर जगह चकानचूर होता दिखाई देने लगा।
कुछ लोग ‘आम आदमी पार्टी’ को पानी का बुलबुला मानते हैं तो कुछ चिल्लड़ पार्टी कहने से नहीं चुकते। कुछ इन्हें पागलों की टीम कहने लगे, तो कुछ इसे अराजक पार्टी कहने से नहीं हिचक रहे। खैर! जिसकी जिनती सोच।
वहीं दूसरी ओर जाने-माने राजनीतिज्ञों के भी हाथ-पाँव अभी से ही फूलने लगे हैं। इनको लगता है कि भारतीय भ्रष्ट राजनीति को ही ‘आप’ से खतरा हो चला है। इनके व्यवहार व बार-बार राष्ट्रपतिजी के भाषणों से तो यही झलकता है। वर्तमान हालत तो यही संकेत दे रहें हैं कि जिसने महज मां के भ्रूण में ही कदम रखा है उसे मारने के लिये देश के तमाम जाने-माने राजनीतिज्ञों की एक फौज लामबंध हो चुकी है। इनका साथ दे रहा भारत का संविधान जिसे इन लोगों ने 340 कमरे के आलिशान भवन के अंदर बंधक बना रखा है।
पिछले दिनों जिस प्रकार दिल्ली विधानसभा में इन दोनों राजनीति दलों ने कल की जन्मी पार्टी को गिराने के लिये अपनी शक्ति का प्रयोग किया यह ना सिर्फ अपने आप में आश्चर्य पैदा करती है साथ ही 27 सीट की सरकार को गिराने के लिय 42 सीट की ताकत दिखाना ही अपने आप में यह बताने के लिये सक्षम है कि ये दोनों बड़ी राजनीति दल ‘आप’ के बढ़ते कदम से किस कदर भयभीत हो चुकी है। इन्हें लगने लगा था कि ‘आप’ को सरकार बनाने का अवसर देकर जनता के सामने ‘आप’ को एक्सपोज करने की जगह वे खुद एक्सपोज होते जा रहें हैं।
अब इस बात में कोई बहस नहीं रही कि देश में स्वच्छ राजनीति का विकल्प गर्भ में जन्म ले चुका है। जो भ्रष्ट राजनीति से परे, अपनी अलग सोच रखती है। कांग्रेसवाद, भ्रष्टवाद, बामवाद, समाजवाद, गाँधीवाद, लोहियावाद, दक्षिणवाद, पश्चिमवाद, दलीतवाद, अल्पसंख्यकवाद, हिन्दूवाद, मुस्लिमवाद और ना जाने कितने वाद के वादों की भूलभुलैया के बीच एक नया वाद जिसे ‘केजरीवाद’ का नाम देना सटीक रहेगा, ने जन्म ले लिया है।
– शम्भु चौधरी (कोलकाता- 15.02.2014)
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दिल्ली विधानसभा के चुनाव में ‘आप’ को सफलता क्या मिली, सत्ता के दलालों ने अपनी नैतिकता को ही ताख पर रख दिया। भाजपा अपनी प्रमुख राजनीति प्रतिद्वन्द्वी कांग्रेस को निशाना लगाने से हटकर पूरे देश में ‘आप’ के खिलाफ जनमत बनाने में लग गई। अचानक से इनके ऊपर ऐसा कौन सा पहाड़ टूट पड़ा कि भाजपा और कांग्रेस दोनों राजनैतिक पार्टियों को ‘आम आदमी’ से खतरा लगने लगा?
इनके समर्थकों की भाषा शर्मनाक तो हो ही चुकी है इन राजनीति दलों के द्वारा संचालित विचारधारा के पोषक लेखकों / समाचार संपादकों की भाषा ने भी अब अपना संयम खो दिया है। अभी तक इनके गले में ‘केजरीवाद’ की बात पच नहीं पा रही। ये मानते हैं कि देश की जनता के विचारों को ये चंद टटू ही चलाते हैं। इनका भ्रम हर जगह चकानचूर होता दिखाई देने लगा।
कुछ लोग ‘आम आदमी पार्टी’ को पानी का बुलबुला मानते हैं तो कुछ चिल्लड़ पार्टी कहने से नहीं चुकते। कुछ इन्हें पागलों की टीम कहने लगे, तो कुछ इसे अराजक पार्टी कहने से नहीं हिचक रहे। खैर! जिसकी जिनती सोच।
वहीं दूसरी ओर जाने-माने राजनीतिज्ञों के भी हाथ-पाँव अभी से ही फूलने लगे हैं। इनको लगता है कि भारतीय भ्रष्ट राजनीति को ही ‘आप’ से खतरा हो चला है। इनके व्यवहार व बार-बार राष्ट्रपतिजी के भाषणों से तो यही झलकता है। वर्तमान हालत तो यही संकेत दे रहें हैं कि जिसने महज मां के भ्रूण में ही कदम रखा है उसे मारने के लिये देश के तमाम जाने-माने राजनीतिज्ञों की एक फौज लामबंध हो चुकी है। इनका साथ दे रहा भारत का संविधान जिसे इन लोगों ने 340 कमरे के आलिशान भवन के अंदर बंधक बना रखा है।
पिछले दिनों जिस प्रकार दिल्ली विधानसभा में इन दोनों राजनीति दलों ने कल की जन्मी पार्टी को गिराने के लिये अपनी शक्ति का प्रयोग किया यह ना सिर्फ अपने आप में आश्चर्य पैदा करती है साथ ही 27 सीट की सरकार को गिराने के लिय 42 सीट की ताकत दिखाना ही अपने आप में यह बताने के लिये सक्षम है कि ये दोनों बड़ी राजनीति दल ‘आप’ के बढ़ते कदम से किस कदर भयभीत हो चुकी है। इन्हें लगने लगा था कि ‘आप’ को सरकार बनाने का अवसर देकर जनता के सामने ‘आप’ को एक्सपोज करने की जगह वे खुद एक्सपोज होते जा रहें हैं।
अब इस बात में कोई बहस नहीं रही कि देश में स्वच्छ राजनीति का विकल्प गर्भ में जन्म ले चुका है। जो भ्रष्ट राजनीति से परे, अपनी अलग सोच रखती है। कांग्रेसवाद, भ्रष्टवाद, बामवाद, समाजवाद, गाँधीवाद, लोहियावाद, दक्षिणवाद, पश्चिमवाद, दलीतवाद, अल्पसंख्यकवाद, हिन्दूवाद, मुस्लिमवाद और ना जाने कितने वाद के वादों की भूलभुलैया के बीच एक नया वाद जिसे ‘केजरीवाद’ का नाम देना सटीक रहेगा, ने जन्म ले लिया है।
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